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Success Story: ओडिशा के इस किसान ने जैविक खेती से बदली अपनी किस्मत, सालाना 30 लाख रुपये कमाए

Success Story: ओडिशा के नबरंगपुर जिले के झारीगांव गांव में जन्मे जितेंद्र महाराणा ने अजीबोगरीब परिस्थितियों में जैविक खाद (Organic Fertilizer) के साथ अपना रोमांच शुरू किया। वह अक्सर अपने कायापलट का श्रेय कोविड-19 महामारी को देते हैं। मात्र 2,000 रुपये के मामूली खर्च से उन्होंने लगभग छह साल पहले, महामारी के चरम पर पहुंचने से बहुत पहले ही जियाखत की तैयारी शुरू कर दी थी। पहले तो वह अपने किचन गार्डन को सहारा देने के लिए केवल टिकाऊ साधनों का उपयोग करना चाहते थे। हालाँकि, इस छोटे से प्रयास ने जल्द ही एक बहुत ही महत्वपूर्ण और रोमांचक अवसर की ओर अग्रसर किया।

Success story
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लॉकडाउन के दौरान जितेंद्र को जैविक खाद बनाने के तरीकों के साथ प्रयोग करने का भरपूर मौका मिला। उन्होंने देखा कि कैसे वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) ने उनके बगीचे को पुनर्जीवित करने के अलावा उनकी फसलों की गुणवत्ता और स्वाद में सुधार किया। वह जल्द ही इस निष्कर्ष पर पहुँच गए कि इस दृष्टिकोण का विस्तार किया जा सकता है, न केवल उनके अपने लाभ के लिए बल्कि अन्य किसानों के लाभ के लिए भी।

अपने नेटवर्क का विस्तार करने, सूचना साझा करने को बढ़ावा देने, तथा अपने और अपने अन्य जैविक खेती साझेदारों के लिए नई संभावनाएं खोलने के प्रयास में, जितेंद्र महाराणा हाल ही में कृषि जागरण के ग्लोबल फार्मर बिजनेस नेटवर्क (GFBN) में शामिल हुए।

टैंक से लेकर इलाके तक: समकालीन तकनीक का उपयोग करके विस्तार

जितेंद्र ने पहले छोटे टैंकों में जैविक खाद का उत्पादन किया। लेकिन जब मांग बढ़ी और उनकी खाद की प्रभावशीलता को स्वीकार किया गया, तो उन्होंने अधिक परिष्कृत तकनीकों का उपयोग करना शुरू कर दिया। अब वे खुली जमीन और समकालीन खाद और पोषक तत्व-संवर्द्धन विधियों (Nutrient-Enrichment Methods) का उपयोग करके बहुत बड़े पैमाने पर जियाखत का उत्पादन करते हैं।

जितेंद्र सुनिश्चित करते हैं कि इनपुट प्राकृतिक हों और माइक्रोबायोलॉजिकल सामग्री (Microbiological Materials) में उच्च हों, क्योंकि वे अपने खाद के लिए 90% कच्चे माल को आस-पास के गाय के गोबर से प्राप्त करते हैं। वे खाद की संरचना और वातन को बढ़ाने के लिए उसमें 10% लकड़ी के चिप्स और सूखे पत्ते मिलाते हैं। यह सटीक मिश्रण खाद को अपघटन प्रक्रिया में सहायता करके और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन की गारंटी देकर मिट्टी की उर्वरता के लिए अधिक कुशल बनाता है।

ख़ुशती एग्रो: एक स्वप्निल जैविक व्यवसाय

जैसे-जैसे उनके ग्राहक और प्रतिष्ठा बढ़ी, जितेन्द्र ने औपचारिक रूप से अपनी कंपनी स्थापित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपना खुद का व्यवसाय, ख़ुशती एग्रो शुरू किया, जो अब ओडिशा और पड़ोसी राज्यों में अपने जैविक उर्वरक (Organic Fertilizers) के लिए प्रसिद्ध है। विविध मांगों वाले किसानों को समायोजित करने के लिए, ख़ुशती एग्रो जियाखाट के निर्माण और पैकिंग में माहिर है और इसे 1 किलोग्राम, 5 किलोग्राम, 30 किलोग्राम और 50 किलोग्राम के वज़न श्रेणियों में बेचता है।

जितेन्द्र का ट्रेडमार्क इसकी निर्भरता और निरंतर गुणवत्ता से अलग है। उनके उर्वरकों का कालाहांडी, कोरापुट, बलांगीर और नुआपाड़ा जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विपणन किया जाता है। उन्हें छत्तीसगढ़ के किसानों को भी बेचा जाता है, जो पास में ही है। उनकी कंपनी इस क्षेत्रीय सफलता के परिणामस्वरूप समृद्ध हुई है, जिसने वैश्विक स्तर पर जैविक स्थिरता को बढ़ावा देने में भी सहायता की है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा देना

ग्रामीण रोजगार के प्रति जितेन्द्र महाराणा की प्रतिबद्धता कहानी के सबसे प्रेरणादायक तत्वों में से एक है। 15 से अधिक पूर्णकालिक कर्मचारी, जिनमें से कई पहले बेरोजगार या कम रोजगार वाले थे, अब उनके खेत पर काम करते हैं। जितेन्द्र ने इन रोजगार संभावनाओं को पैदा करके स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और अपने क्षेत्र में जीवन स्तर को ऊपर उठाने में छोटा लेकिन महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

उनके प्रयासों ने आस-पास के अन्य किसानों का भी ध्यान आकर्षित किया है जो उनकी तकनीकों से सीखकर उनकी सफलता का अनुकरण करने के लिए उत्सुक हैं। इस बढ़ती रुचि के जवाब में जितेन्द्र एक संरक्षक और प्रशिक्षक (Mentors and Trainers) के रूप में सेवा करने के लिए आगे आए हैं। वह अक्सर जैविक खाद पर प्रशिक्षण सत्र और सेमिनार आयोजित करते हैं, जहाँ वे मददगार सलाह देते हैं, जियाखत तैयार करने के चरणों के बारे में बताते हैं और जैविक खाद पर स्विच करने के लाभों पर प्रकाश डालते हैं।

जैविक खाद: खेती के लिए एक लाभ

जियाखत और अन्य जैविक खादों के कई लाभ हैं। जैविक खाद मिट्टी की संरचना में सुधार करती है, सूक्ष्मजीवी गतिविधि को बढ़ाती है और नमी को बरकरार रखती है, जबकि कृत्रिम खाद (Artificial Fertilizer) धीरे-धीरे मिट्टी के स्वास्थ्य को खराब कर सकती है। कृत्रिम इनपुट पर निर्भरता कम करके और जैविक रूप से मिट्टी को पोषण देकर, यह टिकाऊ खेती को प्रोत्साहित करता है।

जितेंद्र ने व्यक्तिगत रूप से देखा है कि कैसे वर्मीकंपोस्टिंग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करती है। उनके उर्वरक का उपयोग करने वाले किसानों ने बेहतर खाद्य स्वाद, बनावट और शेल्फ लाइफ देखी है। इसके अलावा, जैविक रूप से उगाई जाने वाली फसलें पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल, मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और खतरनाक रासायनिक अवशेषों से रहित होती हैं।

स्थानीय प्रभाव और सरकारी प्रोत्साहन

राज्य और संघीय दोनों सरकारों ने जैविक खेती को अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं क्योंकि वे समझते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण है। इन कार्यक्रमों का लक्ष्य पारंपरिक कृषि विधियों के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना है, जिसमें कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) द्वारा दिए जाने वाले प्रशिक्षण सत्र से लेकर जैविक इनपुट पर सब्सिडी शामिल हैं।

जितेंद्र का काम इन प्रयासों से जुड़ा है और सरकार के उद्देश्य का समर्थन करता है। वह अब इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि कैसे जमीनी स्तर पर सक्रियता और नीति एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। कृषि अधिकारी, शोधकर्ता और अन्य किसान अक्सर उनके मॉडल को देखने और उससे सीखने के लिए उनकी संपत्ति पर आते हैं।

भारत के ग्रामीण समुदायों के लिए एक उदाहरण

जितेंद्र की कहानी एक व्यक्तिगत सफलता की कहानी होने के अलावा ग्रामीण व्यवसाय (Rural Business) के लिए एक मॉडल के रूप में काम करती है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे जुनून और उद्देश्य से प्रेरित एक मामूली अवधारणा एक लंबे समय तक चलने वाली कंपनी में विकसित हो सकती है जो पूरे समुदाय के साथ-साथ व्यक्ति को भी लाभ पहुँचाती है।

उनके अनुसार, सफलता की असली परीक्षा किसी की अपनी संपत्ति नहीं बल्कि इस प्रक्रिया में वह कितने लोगों को प्रभावित कर सकता है, यह है। जितेंद्र ने दूसरों को शिक्षित करके, रोजगार पैदा करके और जैविक खेती को बढ़ावा देकर नबरंगपुर और विदेशों में युवा किसानों के लिए खुद को एक रोल मॉडल के रूप में स्थापित किया है।

भविष्य की योजनाएँ

जितेंद्र भविष्य में खुष्टि एग्रो के व्यवसाय को बढ़ाना चाहते हैं। उनका इरादा माइक्रोबियल मृदा संवर्द्धक और तरल जैव-उर्वरक (Microbial Soil Enhancers and Liquid Bio-Fertilizers) जैसे और अधिक जैविक उत्पाद लॉन्च करने का है। अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करने और अधिक किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, वह सरकारी एजेंसियों और कृषि महाविद्यालयों के साथ सहयोग करने के तरीकों की भी तलाश कर रहे हैं।

जितेंद्र महाराणा ग्रामीण नवाचार, टिकाऊ कृषि और सामुदायिक सशक्तिकरण का एक उज्ज्वल उदाहरण हैं, क्योंकि उन्होंने केवल 2,000 रुपये से एक साधारण शुरुआत से लेकर 30 लाख रुपये सालाना कमाने तक की अविश्वसनीय यात्रा की है। उन्होंने जैविक खाद को एक पिछवाड़े के शौक से एक सफल कंपनी में बदल दिया है जो सैकड़ों किसानों को रोजगार देती है और खुष्टि एग्रो के माध्यम से दर्जनों परिवारों को शिक्षा प्रदान करती है।

जितेंद्र जैसी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि, जबकि कृषि उद्योग पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ तरीकों की तलाश कर रहा है, प्रकृति की ओर लौटना और उद्देश्य और सफलता के साथ उसका अनुसरण करना ही खेती का भविष्य है।

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