Carrot Farming : इस सीजन करें ‘पूसा रुधिरा’ और ‘पूसा केसर’ किस्मों की बुवाई, सिर्फ कुछ हफ्तों में ही मिलेगी रिकॉर्ड तोड़ पैदावार
Carrot Farming Tips for High Yield: रबी सीजन में गाजर की खेती किसानों के लिए एक शानदार अवसर लेकर आई है। गाजर न केवल पोषण से भरपूर सब्ज़ी है, बल्कि इसके कई चिकित्सीय और आर्थिक उपयोग भी हैं। इसका उपयोग अचार, सलाद, जूस और विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। वहीं, प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में गाजर की लगातार बढ़ती मांग इसे किसानों के लिए एक फायदेमंद नकदी फसल (Cash Crop) बना देती है।

गाजर का जूस, अचार और सूखे पाउडर के रूप में भी बाजार में बड़ी मात्रा में बिकता है। इसलिए किसान यदि इस मौसम में सही किस्म की गाजर लगाते हैं, तो उन्हें कम लागत में अधिक मुनाफा मिल सकता है।
गाजर की खेती (Carrot Farming) क्यों है लाभदायक
जिला उद्यान विशेषज्ञ के अनुसार, “गाजर एक जड़ वाली फसल है जो अपेक्षाकृत कम समय में तैयार हो जाती है और किसानों को निश्चित लाभ देती है।”
उन्होंने बताया कि गाजर की मांग सालभर बनी रहती है, लेकिन सर्दियों के मौसम में इसकी खपत कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए अक्टूबर-नवंबर महीना गाजर की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
गाजर की खेती का एक बड़ा फायदा यह है कि इसे कम सिंचाई और सीमित संसाधनों के साथ भी उगाया जा सकता है। इसके अलावा, यह मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखती है और दूसरी फसलों के साथ रोटेशन में बोई जा सकती है।
उपजाऊ मिट्टी और खेत की तैयारी
गाजर की फसल अच्छी उपज के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जानी चाहिए। ऐसी मिट्टी में जल निकासी की व्यवस्था बेहतर होती है, जिससे जड़ें आसानी से विकसित होती हैं। खेत की तैयारी के दौरान ध्यान रहे कि मिट्टी पूरी तरह भुरभुरी हो और उसमें कोई बड़े डेल या पत्थर न हों।
विशेषज्ञों के अनुसार, बुवाई से पहले खेत में 15–20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद (rotted cow dung manure) या कंपोस्ट डालना फायदेमंद रहता है। इसके बाद नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा डालने से फसल का विकास तेजी से होता है।
सही किस्म का चुनाव है सबसे ज़रूरी
किसानों को हमेशा प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाले बीज ही इस्तेमाल करने चाहिए। इससे अंकुरण दर अधिक रहती है और रोगों का खतरा कम होता है।
वर्तमान समय में “पूसा रुधिरा” और “पूसा केसर” गाजर की दो प्रमुख किस्में (Two major varieties) किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। ये दोनों किस्में भारतीय परिस्थितियों के अनुसार तैयार की गई हैं और कम समय में अधिक उपज देने के लिए जानी जाती हैं।
पूसा रुधिरा: उच्च उत्पादन और रंगीन जड़ों वाली किस्म
पूसा रुधिरा किस्म की खासियत इसका गहरा लाल रंग और स्वादिष्ट जड़ें हैं। यह किस्म 90 से 100 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है।
डॉ. पाठक के अनुसार, इस किस्म से किसान प्रति एकड़ (per acre) 300 से 310 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं। इसकी जड़ें आकर्षक होती हैं और बाजार में इसका भाव भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक मिलता है।
इस किस्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कम तापमान (low temperature) में भी तेजी से विकसित होती है और जल्दी कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जो किसान समय पर बुवाई करते हैं, वे दिसंबर-जनवरी में ही बाजार में गाजर बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
पूसा केसर: जल्दी तैयार होने वाली स्वादिष्ट किस्म
दूसरी ओर, पूसा केसर किस्म भी किसानों के लिए एक बढ़िया विकल्प है। यह 85 से 100 दिनों के भीतर उपज देना शुरू कर देती है। इसकी जड़ें पतली, लंबी और गहरे केसरिया रंग (deep saffron colour) की होती हैं, जो दिखने में बेहद आकर्षक होती हैं।
इस किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर 250 से 270 क्विंटल तक की उपज प्राप्त कर सकते हैं।
पूसा केसर किस्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह कम लागत में जल्दी तैयार होती है और कटाई के बाद इसका स्वाद लंबे समय तक बरकरार रहता है। यह किस्म विशेष रूप से गाजर जूस और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
सिंचाई और देखभाल
गाजर की फसल में शुरुआती अवस्था में हल्की सिंचाई जरूरी होती है। अंकुरण के बाद हर 6–7 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए। खेत को जलभराव से बचाना (Preventing waterlogging) अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इससे जड़ों में सड़न हो सकती है।
फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई और रोग नियंत्रण पर ध्यान देना चाहिए ताकि उत्पादन पर असर न पड़े।
कम लागत में ज़्यादा मुनाफा
अगर किसान सही तरीके से खेत तैयार करें, संतुलित खाद डालें और प्रमाणित बीजों का उपयोग करें, तो गाजर की खेती से कम लागत में उच्च उत्पादन संभव है। इन दोनों किस्मों — पूसा रुधिरा और पूसा केसर — से किसानों को प्रति एकड़ हजारों रुपये का शुद्ध लाभ हो सकता है

