AGRICULTURE

Cultivation of Castor: अपनी खेती को बनायें सोने का निवेश, अपनाएं ये 5 अचूक तकनीकें और पाएं शानदार लाभ

Cultivation of Castor: अरंडी की खेती अपनी औषधीय और औद्योगिक उपयोगिता के कारण सदियों से किसानों की पसंद रही है। अरंडी का तेल पेट दर्द, पाचन सुधार और बच्चों की मालिश तक के लिए उपयोगी माना जाता है। साथ ही साबुन, दवा और कई कॉस्मेटिक उत्पादों में भी इसका उपयोग होता है। इसकी खली उत्तम जैविक खाद के रूप में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है। अरंडी का पौधा झाड़ीदार होता है जो लगभग 10 से 12 फीट की ऊँचाई तक पहुंचता है। भारत दुनिया का सर्वाधिक अरंडी उत्पादक देश है और यहां लगभग 10 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हर साल किया जाता है।

Cultivation of castor
Cultivation of castor

अरंडी की प्रमुख किस्में और उनका चयन

किस्मों का चयन अरंडी की सफल खेती (Cultivation of Castor) की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। भारत में मुख्य प्रजातियों में 47-1 (ज्वाला), ज्योति, क्रांति किरण, हरिता, GC-2, TMV-6 और DCH-519 जैसी किस्में शामिल हैं। इसके अलावा GCH-4, GCH-5 और GCH-7 जैसी किस्में भी किसानों के बीच लोकप्रिय हैं। यदि किसान नई विकसित मजबूत varieties ढूँढना चाहते हैं तो वे SeedNet पोर्टल पर आसानी से देख सकते हैं।


फसल चक्र से बढ़ता उत्पादन

अरंडी की फसल को एक ही खेत में लगातार बोना नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसलिए फसल चक्र अपनाना बेहद लाभकारी है। अरंडी के बाद मूंगफली, सूरजमुखी, रागी, ज्वार, बाजरा, तिल और लोबिया जैसी फसलों का चुनाव खेत की उर्वरता बनाए रखता है। यह पद्धति भूमि में पोषक तत्व लौटाती है और मिट्टी को स्वस्थ बनाती है।


सही जुताई से अच्छी पैदावार की नींव

मानसून के आने से पहले (Preparation) खेत में एक–दो जुताई कर पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। अरंडी की बुवाई मानसून शुरू होने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। रबी की फसल के लिए सितंबर–अक्टूबर का समय बिल्कुल उपयुक्त है जबकि गर्मी की फसल की बुवाई जनवरी में की जाती है।


बीजों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान

उच्च उत्पादन के लिए प्रमाणित एजेंसी से अच्छे संकर बीज (Germination) खरीदना सबसे ज़रूरी कदम है। अच्छे बीज न सिर्फ रोग-प्रतिरोधी होते हैं बल्कि 4 से 5 वर्षों तक उपयोग में भी लाए जा सकते हैं। गुणवत्तापूर्ण बीज से फसल की सफलता काफी बढ़ जाती है।


बीज दर और दूरी का सही निर्धारण

अरंडी की बुवाई में बीज दर उसकी किस्म और मौसम पर निर्भर करती है। वर्षा ऋतु में 90×60 सेमी और सिंचित स्थितियों में 120×60 सेमी की दूरी (Spacing) रखनी चाहिए। बीजों की दर लगभग 10–15 किलो प्रति हेक्टेयर उपयुक्त मानी जाती है। सही दूरी से पौधे को पर्याप्त पोषण मिलता है।


बीज उपचार: फसल सुरक्षा का पहला कदम

बीज उपचार करने से फसल रोगों से सुरक्षित (Protection) रहती है और अंकुरण बेहतर होता है। अरंडी के बीज को थीरम या कैप्टन 3 ग्राम/किलो या कर्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किलो से उपचारित करना चाहिए। इसके अलावा ट्राइकोडर्मा विरिडे 10 ग्राम/किलो और 2.5 किलो मात्रा को खाद में मिलाकर मिट्टी में डालना बेहद प्रभावी होता है।


बुवाई की विधि और आधुनिक साधन

अरंडी की बुवाई देशी हल या सीड ड्रिल से उचित नमी पर की जा सकती है। बेहतर परिणामों के लिए  Technique बीजों को 24–48 घंटे तक भिगोकर रखना चाहिए। यदि खेत में लवणीय मिट्टी हो तो बीजों को 1% सोडियम क्लोराइड घोल में 3 घंटे भिगोने से बेहतर अंकुरण होता है।


खाद और उर्वरक का सही प्रबंधन

अरंडी की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 10–12 टन सड़ी हुई गोबर खाद का प्रयोग बेहद लाभकारी (Nutrition) है। वर्षा आधारित खेती में 60 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फास्फोरस और सिंचित परिस्थितियों में 120 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फास्फोरस और 30 किलो पोटाश उपयोग करना चाहिए।


सिंचाई: कम पानी में बेहतरीन परिणाम

अरंडी वर्षा आधारित फसल है, लेकिन लंबे सूखे की स्थिति में एक संरक्षी सिंचाई (Irrigation) बेहद जरूरी होती है। विशेष रूप से स्पाइक निकलने के समय पानी देने से उपज में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। ड्रिप सिंचाई से 80% पानी की बचत होती है।


खरपतवार नियंत्रण: अधिक उपज की कुंजी

खरपतवार (Weeds) अरंडी के पोषक तत्व चुरा लेते हैं, इसलिए समय पर नियंत्रण आवश्यक है। बुवाई के 25 दिन बाद पहली गुड़ाई करनी चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में ट्राईफ्लोरेलिन या एलाक्लोर जैसे रसायन का उपयोग भी प्रभावी है।


रोग नियंत्रण: स्वस्थ फसल की पहचान

अरंडी में फ्यूजेरियम उखटा, जड़ गलन और अल्टेरनेरिया जैसे रोग (Disease) फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। रोग प्रतिरोधी किस्मों और कर्बेन्डाजिम या थीरम से बीज उपचार इन रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। आवश्यकता पड़ने पर मैन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव भी जरूरी है।


कीट प्रबंधन: उपज बचाने का स्मार्ट तरीका

सेमीलूपर, तंबाकू की इल्ली और कैप्सूल बेधक जैसे कीट (Pest) अरंडी की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। शुरुआती अवस्था में इल्लियों को हाथ से नष्ट करना उपयोगी है। गंभीर संक्रमण में क्लोरोपायरीफॉस, प्रोफेनोफॉस या एसिफेट का छिड़काव करना चाहिए।


कटाई और गहाई: मेहनत का अंतिम फल

अरंडी की कटाई बुवाई (Harvest) के लगभग 90–120 दिन बाद करनी चाहिए, जब कैप्सूल का रंग बदलने लगे। स्पाइक को काटकर धूप में सुखाकर गहाई करनी चाहिए। गहाई छड़ी, बैलों या मशीन से आसानी से की जा सकती है।

Back to top button