Ratanjot cultivation: बंजर भूमि पर लहरा रहा है रतनजोत, 100% बायो-डीजल की राह होगी आसान
Ratanjot cultivation: क्या आपने कभी सोचा है कि वह जमीन जिसे हम बंजर या उपयोग के लायक नहीं मानते, ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्रोत बन सकती है? जेट्रोफा की खेती यही संभावना पूरी करती है। यह सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि किसानों, पर्यावरण और ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी विकल्प है। जेट्रोफा के बीजों से बनने वाला बायो-डीजल न केवल पेट्रोलियम डीजल का एक श्रेष्ठ विकल्प है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बहुत हितकर है क्योंकि इससे कम धुआँ निकलता है। इसके अलावा, इसका उपयोग औषधि, जैविक खाद, रंग बनाने, भूमि सुधार और भूमि कटाव को रोकने जैसे कई कार्यों में होता है, जो इसे एक बहुउद्देशीय फसल बनाता है। यह खेती किसानों को नए रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ अन्य फसलें अच्छी नहीं होती हैं।

जेट्रोफा की पहचान और महत्व
जेट्रोफा, जिसे वैज्ञानिक रूप से जैट्रोफा करकस (Jatropha Curcas) के नाम से जाना जाता है, और जिसे हम जंगली अरंड, रतनजोत, या जमालगोटा जैसे नामों से भी जानते हैं, एक ऐसा पौधा है जिसने आधुनिक ऊर्जा संकट के समाधान में एक नई उम्मीद जगाई है। यह सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि एक Jatropha biofuel का एक शक्तिशाली स्रोत है जो गैर-विषैला होने के साथ-साथ पेट्रो-डीजल का एक बेहतरीन विकल्प साबित हो रहा है। इसकी खेती से न केवल देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में मदद मिलती है, बल्कि यह किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी लाभदायक है, खासकर उन लोगों के लिए जो बंजर भूमि का मालिक हैं।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
जेट्रोफा का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह मुश्किल भूमि में भी फलता-फूलता है। चाहे वह रेतीली मिट्टी हो, पथरीली भूमि हो, या फिर वह जमीन जो दूसरी फसलों के लिए बंजर समझी जाती हो, जेट्रोफा वहां अपनी पहचान बना लेता है। यह गर्म और समशीतोष्ण जलवायु में सबसे अच्छा उगता है। दोमट मिट्टी इसकी वृद्धि के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक उगाने के लिए एक सफल Jatropha plantation की योजना बनाते समय यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जल जमाव वाले क्षेत्र इसके लिए हानिकारक होते हैं, इसलिए ऐसी जमीन से बचना चाहिए।
बीज चुनाव और बुवाई की तकनीक
एक सफल फसल की नींव अच्छे बीज और उनकी सही तकनीक से बुवाई पर निर्भर करती है। जेट्रोफा की खेती (Ratanjot cultivation) के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। लेकिन इन बीजों को बोने से पहले एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया से गुजरना होता है, जिसे Jatropha seed treatment कहते हैं। इस उपचार का मुख्य उद्देश्य जड़ और तने के सड़ने जैसी समस्याओं को रोकना है। इसके लिए, थाइरेम, कैप्टन और कार्बेन्डाजिम (या बेविस्टीन) को 1:1:1 के अनुपात में मिलाकर 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार किया जाता है।
रोपण और पौधों के बीच की दूरी
जेट्रोफा की खेती में रोपण की विधि और पौधों के बीच सही दूरी बनाए रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे पौधों को जरूरी पोषक तत्व, धूप और हवा मिलती है। आमतौर पर मार्च-अप्रैल में नर्सरी तैयार की जाती है और जुलाई से सितंबर के बीच इन पौधों को खेत में रोपा जाता है। विभिन्न Jatropha cultivation methods में, बिना सिंचाई वाले क्षेत्रों में पौधों के बीच 2×2 मीटर की दूरी रखी जाती है, जबकि सिंचित क्षेत्रों में यह दूरी 3×3 मीटर होती है। इसके अलावा, अगर आप इसे बाड़ के रूप में लगा रहे हैं, तो दो पंक्तियों में 0.50 x 0.50 मीटर की दूरी पर्याप्त होती है।
पौधशाला में पौधे तैयार करना
सीधे खेत में बीज बोने के अलावा, पौधशाला (नर्सरी) में पौधे तैयार करना एक बेहतर तरीका है, क्योंकि इससे पौधों की जीवित दर बढ़ जाती है। दो मुख्य तरीके हैं: समतल क्यारी और पॉलीबैग। समतल क्यारी में, 15×15 सेमी की दूरी पर बीज बोए जाते हैं, जिसे पहले 12 घंटे तक भिगोया जाता है। तीन महीने बाद, जब पौधे मजबूत हो जाते हैं, तो उन्हें मुख्य खेत में रोपा जा सकता है। दूसरे तरीके में, पॉलीबैग (16″ x 12″) में बालू, मिट्टी और कम्पोस्ट खाद को 1:1:1 के अनुपात में मिलाकर भरा जाता है और फिर 2-3 बीज बोए जाते हैं। एक प्रभावी Jatropha nursery management के लिए नियमित सिंचाई और देखभाल आवश्यक है।
उन्नत किस्में जो दे रही हैं बेहतर परिणाम
जेट्रोफा की खेती को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए, वैज्ञानिकों और कृषि विश्वविद्यालयों ने कई high yield Jatropha varieties विकसित की हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में GIE-नागपुर, RJ-117, और बामुण्डा जैसी किस्मों का परीक्षण किया जा रहा है और ये बहुत अच्छे परिणाम दे रही हैं। सरदार कृषि विश्वविद्यालय, बनासकांठा द्वारा विकसित SDAUJI किस्म भी उत्पादन के मामले में काफी आगे है। इन उन्नत किस्मों का चयन करने से किसानों को प्रति हेक्टेयर अधिक उपज मिलती है, जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
जैविक खाद और उर्वरक प्रबंधन
जेट्रोफा की पौधों को तेजी से विकसित होने और अच्छी उपज देने के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। रोपण के समय, गड्डे में मिट्टी, रेत और कम्पोस्ट खाद को 1:1:1 के अनुपात में मिलाकर भरना चाहिए। इस मिश्रण में प्रति गड्डा 20 ग्राम यूरिया, 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश मिलाना चाहिए। एक सफल organic Jatropha farming के लिए रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैविक खाद और कम्पोस्ट का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए, जो न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करता है बल्कि लंबे समय में उत्पादकता भी बढ़ाता है।
सिंचाई और गुड़ाई का महत्व
जेट्रोफा का पौधा सूखे को बहुत अच्छी तरह से झेल सकता है, लेकिन अच्छी वृद्धि और उपज के लिए उचित सिंचाई आवश्यक है। विशेष रूप से गर्मी के मौसम में, यानी मार्च से मई के बीच, दो बार सिंचाई करने से पौधे तेजी से बढ़ते हैं। प्रत्येक तीन महीने के अंतराल पर गुड़ाई करने से मिट्टी में हवा और पानी का संचार बेहतर होता है, जिससे जड़ों का विकास अच्छी तरह होता है। प्रभावी Jatropha irrigation techniques में ड्रिप सिंचाई को सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि यह पानी की बचत करते हुए पौधों को सीधे नमी प्रदान करती है।
कीट और रोग प्रबंधन
किसी भी फसल की तरह, जेट्रोफा को भी कीटों और रोगों का खतरा रहता है। कोमल पौधों में जड़ सड़न और तना बिगड़ना आम समस्याएं हैं, जिन्हें बीज उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। कटुआ (सूंडी) कीट के प्रकोप से बचाव के लिए लिंडेन या फोलिडोल का छिड़काव किया जा सकता है। एक अच्छी Jatropha pest control रणनीति में नियमित निरीक्षण शामिल है ताकि किसी भी समस्या को शुरुआती चरण में ही पहचाना जा सके और उसे नियंत्रित किया जा सके। रासायनिक कीटनाशकों के अधिक उपयोग से बचना चाहिए और जैविक नियंत्रण विधियों को तरजीह देनी चाहिए।
सही कटाई-छँटाई से बढ़ती है उपज
जेट्रोफा के पौधों को एक व्यवस्थित आकार देने और उनकी उपज क्षमता को बढ़ाने के लिए कटाई-छँटाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। पौधे को गोल छाते के आकार में विकसित करने के लिए पहले दो वर्षों तक छँटाई करना आवश्यक है। पहली छँटाई रोपण के 7-8 महीने बाद की जाती है, जिसमें पौधे को जमीन से 30-45 सेमी ऊंचा रखकर बाकी ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है। एक सही Jatropha pruning से न केवल पौधे की शाखाएं अधिक फैलती हैं, बल्कि इससे फूलों और फलों की संख्या में भी वृद्धि होती है।
उपज और आर्थिक लाभ
जेट्रोफा का पौधा रोपण के दो साल बाद फलना शुरू करता है, लेकिन वास्तविक और आर्थिक रूप से सार्थक उपज तीसरे वर्ष से मिलनी शुरू होती है। बरसात के दौरान पौधों में फूल आते हैं और दिसंबर-जनवरी तक फल पककर तैयार हो जाते हैं। एक अच्छी तरह से प्रबंधित खेत से, तीसरे वर्ष प्रति पेड़ लगभग 500 ग्राम, चौथे वर्ष 1 किलोग्राम, पांचवें वर्ष 2 किलोग्राम और छठे वर्ष से प्रति पेड़ 4 किलोग्राम तक बीज प्राप्त किया जा सकता है। यह Jatropha seed yield समय के साथ बढ़ती है और एक बार स्थापित होने के बाद 40-50 वर्षों तक उत्पादन देती है। अगर हम प्रति किलोग्राम बीज की औसत कीमत 6 रुपये मानें, तो छठे वर्ष से प्रति हेक्टेयर लाखों रुपये की आमदनी की संभावना बनती है, जो इसे एक आकर्षक और लाभदायक व्यवसायिक फसल बनाती है।

