Success Story: बिहार के इस किसान ने खेती में वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल कर बढ़ाई अपनी आय
Success Story: बिहार के रोहतास जिले के सासाराम ब्लॉक के मेहदीगंज के एक अग्रणी किसान दिलीप कुमार सिंह इस बात का एक शानदार उदाहरण बन गए हैं कि वैज्ञानिक खेती (Scientific Farming), सरलता और लगन से कैसे लोगों की जिंदगी बदल सकती है। किराए की सिर्फ़ दो एकड़ ज़मीन से शुरुआत करके, सिंह ने एक सफल सब्ज़ी उगाने वाले व्यवसाय की स्थापना की, जो अब कई समुदायों में 60 एकड़ में फैला हुआ है।

वह वर्तमान में जैविक और अजैविक खेती (Organic and Non-Organic Farming) के तरीकों को मिलाकर, अत्याधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग करके और प्रभावी प्रबंधन पर ज़ोर देकर सालाना 25 लाख रुपये तक कमाते हैं। व्यक्तिगत सफलता का प्रदर्शन करने के अलावा, स्कूल छोड़ने वाले से लेकर पुरस्कार विजेता कृषि उद्यमी बनने तक का उनका सफ़र दिखाता है कि कैसे समकालीन खेती ग्रामीण विकास को बढ़ावा दे सकती है और महत्वपूर्ण रोज़गार प्रदान कर सकती है।
संघर्ष से फसल तक
दिलीप कुमार सिंह, जिनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक रूप से संघर्षरत था, को इंटरमीडिएट की शिक्षा (Intermediate Education) पूरी करने के बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने आजीविका चलाने के प्रयास में 1993 में सब्जियाँ बेचना शुरू किया, लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हो गया कि सिर्फ़ सब्जियाँ बेचना ही पर्याप्त नहीं होगा। उन्होंने मिशिरपुर गाँव में किराए पर ली गई दो एकड़ ज़मीन पर सब्जियाँ उगाना शुरू किया, क्योंकि उनके पास अपनी कोई ज़मीन नहीं थी।
खेती करने के अपने पहले प्रयासों में संभावनाएँ दिखने के बाद उन्हें अपनी कृषि गतिविधियों को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। उन्होंने कुरैच, दयालपुर, लालगंज, नीमा, कोटा, सुमा और जयनगर जैसी जगहों पर 60 एकड़ ज़मीन पट्टे पर लेकर धीरे-धीरे अपनी आय बढ़ाई, जहाँ उन्होंने कई तरह की फ़सलें उगाईं।
दो एकड़ से लेकर साठ एकड़ तक की खेती
सब्जी बागवानी की संभावनाओं को समझने के बाद दिलीप कुमार सिंह ने धीरे-धीरे अपने कृषि क्षेत्र को दो एकड़ से बढ़ाकर साठ एकड़ कर दिया। उनकी फसल उनके गृहनगर के नज़दीक सासाराम ब्लॉक (Sasaram Block) के कई गांवों में फैली हुई थी, जिसमें कुरैच, दयालपुर, लालगंज, नीमा, कोटा, सुमा और जयनगर शामिल थे। कड़ी मेहनत और प्रभावी कृषि विधियों से उनकी सब्जी की पैदावार में बहुत वृद्धि हुई, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई।
दिलीप कुमार सिंह को 2004 में कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), रोहतास, बिक्रमगंज के विशेषज्ञों द्वारा वैज्ञानिक कृषि विधियों से अवगत कराया गया। उन्होंने उनके मार्गदर्शन में अपनी खेती की तकनीक विकसित की, जिसमें बेबी कॉर्न, लौकी, करेला, शिमला मिर्च, टमाटर, भिंडी, फूलगोभी, बैंगन, आलू, प्याज और मिर्च सहित कई तरह की फसलें उगाई गईं।
उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक खेती अपनाना
उन्होंने अपनी कृषि क्षमताओं को और भी निखारने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), वाराणसी के बागवानी विभाग और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR), वाराणसी में प्रशिक्षण लिया। इस प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप वे अत्याधुनिक कृषि तकनीकों से परिचित हुए, खासकर जैविक सब्जियों की खेती में।
दिलीप सिंह ने अपने खेत को 60 एकड़ तक बढ़ाया और केवीके, रोहतास, बीएयू सबौर, भागलपुर और अन्य कृषि संगठनों की निरंतर देखरेख में जैविक और गैर-जैविक दोनों तरह की सब्जियों की खेती शुरू की। उनकी उद्यमशीलता की भावना के कारण, उनकी फर्म बहुत सफल रही और सालाना 20 से 25 लाख रुपये कमा रही है।
परिष्कृत तरीकों का प्रशिक्षण और स्वीकृति
दिलीप कुमार सिंह की उपलब्धि उनके खुद के विकास से कहीं आगे तक फैली हुई है; उनके कृषि व्यवसाय ने रोजगार सृजन में मदद की है। उनके कृषि प्रयासों से सालाना लगभग 15,000-20,000 श्रमिकों को रोजगार मिलता है, जिससे वे बिहार के ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बन गए हैं।
उन्होंने हजारों लोगों को रोजगार की संभावनाएं प्रदान करके कई परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में योगदान दिया है, जो रचनात्मक खेती के गहन सामाजिक प्रभावों को दर्शाता है।
रचनात्मक खेती के तरीके और प्रबंधन तकनीक
दिलीप कुमार सिंह का सब्जी की बागवानी के प्रति व्यवस्थित दृष्टिकोण उन्हें पारंपरिक उत्पादकों से अलग करता है। उन्होंने जिन अत्याधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया है, उनमें शामिल हैं
- कई फसलों को एक साथ उगाकर, अंतर-फसल और मिश्रित फसल उगाकर जोखिम को कम करते हुए भूमि का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है और उपज में वृद्धि की जा सकती है।
- समय पर रोकथाम और उपचारात्मक उपायों का मुख्य ध्यान प्रभावी निवारक उपायों पर है, जिसमें रोग प्रबंधन और कीट नियंत्रण भी शामिल है।
- कृषि प्रणाली की उत्पादकता और श्रम दक्षता की गारंटी तीन-स्तरीय मानव संसाधन प्रबंधन प्रणाली द्वारा दी जाती है।
- विपणन प्रबंधन: बाजार में प्रचलित दरों की तुलना में अपने माल के लिए उच्च कीमतों पर बातचीत करने के लिए रचनात्मक रणनीतियों का उपयोग करता है।
सम्मान और पुरस्कार
दिलीप कुमार सिंह ने अपनी उत्कृष्ट उपलब्धियों (Outstanding Achievements) के लिए राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। बिहार और अन्य क्षेत्रों के कई किसान उनकी रचनात्मक कृषि विधियों से प्रभावित हुए हैं। निम्नलिखित संगठनों ने सब्जी की खेती में उनके योगदान को मान्यता दी है:
- सबौर, भागलपुर का बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU)
- पूसा, समस्तीपुर का राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय
- रोहतास और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)
- नई दिल्ली का भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
कृषि विकास में उनके असाधारण योगदान ने उन्हें कई सम्मान दिलाए हैं, जिनमें सबसे उल्लेखनीय ICAR, नई दिल्ली द्वारा दिया जाने वाला जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार (2012-13) है।
दिलीप कुमार सिंह ने दिखाया है कि दो एकड़ ज़मीन पट्टे पर लेकर और एक बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती करके खेती लाभदायक और क्रांतिकारी दोनों हो सकती है। उनकी कहानी खेती में ज्ञान के साथ-साथ दृढ़ता और लचीलेपन के महत्व को दर्शाती है। वे वैज्ञानिक तरीकों, टिकाऊ खेती (Scientific Methods, Sustainable Farming) के तरीकों और समकालीन कृषि प्रगति को अपनाकर बिहार और विदेशों में किसानों के लिए एक आदर्श बन गए हैं। उनकी कहानी बताती है कि एक किसान एक उद्यमी होने के साथ-साथ एक उत्पादक भी हो सकता है, एक उद्योग को बदल सकता है और कई लोगों को उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है।