Bottle Gourd Farming: हर मौसम में रहती है इस सब्जी की मांग, इसकी खेती कर किसान हो रहे हैं मालामाल
Bottle Gourd Farming: लौकी की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है। एक ऐसी सब्जी जिसकी मांग साल भर बनी रहती है, वह है लौकी। ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है। लौकी (Bottle Gourd) से जुड़ी सभी सब्जियों की बात करें तो लौकी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी (Important Vegetable) माना जाता है।

आम तौर पर लौकी दो आकार की होती है: गोल और लंबी। लंबी लौकी को घिया कहते हैं, जबकि गोल लौकी को पेठा कहते हैं। सब्जियों के अलावा लौकी का इस्तेमाल हलवा और रायता जैसे व्यंजन बनाने में किया जाता है। इसके पत्ते, तने और गूदे का इस्तेमाल कई तरह की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है। लौकी के सूखे छिलकों का इस्तेमाल पहले शराब या स्प्रिट भरने के लिए किया जाता था, इसलिए इसे बॉटल गार्ड कहा जाता है।
साल में तीन बार की जा सकती है लौकी की खेती
ऐसी ही एक सब्जी है जिसकी खेती साल में तीन बार की जाती है। जायद, खरीफ और रबी के मौसम में लौकी की खेती (Gourd Cultivation) की जाती है। रबी की फसल सितंबर के अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक, खरीफ की फसल जून के मध्य से जुलाई के पहले सप्ताह तक और जायद की फसल जनवरी के मध्य में बोई जाती है। जायद की फसल जल्दी बोने के लिए जनवरी के मध्य में लौकी की नर्सरी तैयार की जाती है।
इन बातों का ध्यान रखें
लौकी की खेती के लिए गर्म, आर्द्र वातावरण (Hot, Humid Environment) की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई गीले और गर्मी के महीनों में की जाती है। लौकी की फसल को पाले से नुकसान हो सकता है। वैसे तो इसे मौसम के हिसाब से कई जगहों पर उगाया जाता है, लेकिन शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में इसकी फसल अच्छी होती है। लौकी की खेती के लिए लगभग 30 डिग्री का तापमान आदर्श होता है। इसकी मुख्य किस्मों में अर्का नूतन, अर्का श्रेयस, पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश, अर्का गंगा, अर्का बहार, पूसा नवीन, पूसा हाइब्रिड 3, सम्राट, काशी बहार, काशी कुंडल, काशी कीर्ति और काशी गंगा शामिल हैं।
इस तरह से करें खेती
आप नर्सरी में लौकी के पौधे तैयार कर सकते हैं और उन्हें तुरंत खेत में लगा सकते हैं ताकि तेजी से और भरपूर उत्पादन हो सके। खेत में रोपाई से बीस से पच्चीस दिन पहले पौधों को तैयार किया जाता है। तैयार खेत में एक तरफ इसकी नर्सरी तैयार कर लें। बीज को करीब 4 सेंटीमीटर गहराई (4 cm Depth) में रोपें। मिट्टी की एक पतली परत लगाएं और पानी कम से कम दें। इसके पौधे फाइबर या प्लास्टिक के गिलास में भी तैयार किए जा सकते हैं। हर चार से पांच दिन में सिंचाई करें। रोपाई के 50 से 55 दिन बाद फसल तैयार होने लगती है। जैसे ही फल उचित आकार और गहरे हरे रंग के दिखाई दें, उन्हें तोड़ लें। तने के साथ ही फलों को तोड़ लें। इससे फलों की ताजगी लंबे समय तक बनी रहती है।